EPR रजिस्ट्रेशन नहीं करने वाले लघु और माइक्रो उद्योगों को राहत, नहीं होंगे बंद

प्रदेश के सैकड़ों लघु एवं माइक्रो उद्योगों पर पीसीबी के आदेश की वजह से मंडरा रहे बंदी का खतरा फिलहाल टल गया है। हाईकोर्ट के आदेश से इन उद्योगों को बड़ी राहत मिली है। मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी एवं न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने राज्य में प्लास्टिक निर्मित कचरे पर पूर्ण रूप प्रतिबंध लगाने को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की। खंडपीठ ने कहा कि केंद्रीय पर्यावरण नियंत्रण बोर्ड के नियमानुसार लघु व माइक्रो उद्योगों को ईपीआर रजिस्ट्रेशन से मुक्त रखा गया है तो पंजीकरण नहीं कराने वाले ऐसे उद्योगों को इस नियम के तहत राहत दी जाए।

कोर्ट ने राज्य सरकार से सभी प्लास्टिक पैकेजिंग कंपनियां जो उत्तराखंड में कार्यरत हैं उनके इपीआर प्लान सेंटर पोर्टल पर अपलोड करने तथा केंद्र सरकार से उनके यहां पंजीकृत कंपनियां जो उत्तराखंड में कार्यरत हैं उनका कल्ट बैग प्लान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीसीबी) से साझा करने के लिए कहा। सुनवाई के दौरान लघु व माइक्रो उद्योगों के हित के लिए कार्यरत संस्था लघु उद्योग भारती की ओर से अधिवक्ता खुशबू तिवारी ने कोर्ट को बताया कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने फरवरी 2022 में अपने नियम में संशोधन करते हुए लघु एवं माइक्रो उद्योगों को ईपीआर पंजीकरण की बाध्यता से मुक्त किया है।

इसके बावजूद यूपीसीबी ने निर्देश जारी कर इन उद्योगों पर पंजीकरण नहीं कराने पर बंदी की तलवार लटका दी है। कोर्ट ने इसका संज्ञान लेते हुए कहा कि संबंधित निणर्य में इस तथ्य का ध्यान रखा जाए। इससे प्रदेश के सैकड़ों लघु व माइक्रो उद्योगों को बड़ी राहत मिली है। मामले में सीडकुल एंटरप्रेन्योर वेलफेयर सोसाइटी को भी कोर्ट से राहत मिली।

राज्य की सीमा में आने वाले वाहनों में पोर्टेबल डस्टबिन लगाने का नियम बनाएं… 

कोर्ट ने राज्य सरकार आदेश दिए राज्य की सीमा में जो वाहन आते है उनमें पोर्टेबल डस्टबिन लगाने का नियम बनाएं।

उद्योगों को पंजीकरण के लिए 15 जनवरी तक का दिया समय 
कोर्ट ने कहा कि जिन कंपनियों ने अभी तक पीसीबी में पंजीकरण नहीं कराया है वे 15 जनवरी तक जरूर करा लें। इस मामले में सीमेंट कंपनियों की ओर से जाने माने अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने भी पक्ष रखा।

दोनों मंडलायुक्त, सचिव वन एवं पर्यावरण व अन्य कोर्ट हुए पेश, अगली सुनवाई फरवरी में 

कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि हम इस प्रदेश को साफ सुथरा देखना चाहते है इसलिए समाज को जागरूक करना जरूरी है। कोर्ट ने कुमाऊं और गढ़वाल के मंडलायुक्तों को निर्देश दिए कि पूर्व के आदेशों का पालन करते हुए सभी जगहों में सॉलिड वेस्ट फैसिलिटी का संचालन करना सुनिश्चित करें।

सुनवाई के दौरान कमिश्नर कुमाऊं दीपक रावत, कमिश्नर गढ़वाल, सचिव वन एवं पर्यावरण व मेंबर सेकेट्री पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड व्यक्तिगत रूप से पेश हुए। कमिश्नर कुमाऊं ने कोर्ट को अवगत कराया कि कुमाऊं में 782 वेस्ट स्पॉट है, जिनमें से 500 जगहों को साफ कर दिया गया है। कूड़ा निस्तारण के लिए मंडल के जिला अधिकारियों व उपजिला अधिकारियों को आदेश दिए गए हैं। इस मामले में अधिकारियों ने मंडल में 3101 दौरे भी किए हैं। कमिश्नर गढ़वाल ने अवगत कराया कि रुद्रपयाग व चमोली को छोड़कर मंडल के अन्य जिलों में कूड़े का निस्तारण कर दिया गया है। कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई के लिए फरवरी के दूसरे सप्ताह की तिथि नियत की है।

अल्मोड़ा निवासी जितेंद्र ने दायर की है याचिका 
अल्मोड़ा हवलबाग निवासी जितेंद्र यादव ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा था कि राज्य सरकार ने 2013 में बने प्लास्टिक यूज व उसके निस्तारण के लिए नियमावली बनाई थी। पर इनका पालन नहीं किया जा रहा है। 2018 में केंद्र सरकार ने प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट नियम बनाए थे। इसमें उत्पादनकर्ता, परिवहनकर्ता और विक्रेताओं को जिम्मेदारी दी गई थी कि वे जितना प्लास्टिक निर्मित माल बेचेंगे उतना ही खाली प्लास्टिक वापस ले जाएंगे। अगर नहीं ले जाते हैं तो संबंधित नगर निगम, नगर पालिका व अन्य को फंड देंगे ताकि वे इसका निस्तारण कर सकें लेकिन उत्तराखंड में इसका उल्लंघन हो रहा है।

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