जितेंद्र शर्मा, नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव में आशातीत परिणाम (Lok Sabha Election Result) न मिलने से चिंतन में डूबे भाजपा (BJP) नीत राजग (NDA) खेमे की चिंता को सात राज्यों की 13 सीटों पर हुए उपचुनाव के परिणामों ने और बढ़ा दिया है।13 में से सिर्फ दो सीटों पर सिमटी भाजपा के लिए यह ढांढस का तर्क हो सकता है कि उपचुनाव में सत्ताधारी दल के प्रभावी रहने का ट्रेंड है, लेकिन यही तर्क सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में बड़ी चुनौती के रूप में उसकी प्रतीक्षा कर रहा है, जहां वह सत्तासीन है।
उत्तर प्रदेश की फूलपुर, खैर, गाजियाबाद, मझवां, मीरापुर, मिल्कीपुर, करहल, कटेहरी और कुंदरकी के विधायक इस बार लोकसभा चुनाव जीतकर सांसद बन गए। यह नौ सीटें इस तरह रिक्त हुई और दसवीं सीट सीसामऊ सपा विधायक इरफान सोलंकी की आपराधिक मुकदमे में सदस्यता रद्द होने के कारण खाली हुई है।
लोकसभा में सपा अच्छा प्रदर्शन
इस सीटों पर उपचुनाव की अभी घोषणा नहीं हुई है, लेकिन इनके लिए तैयारी मुख्य विपक्षी सपा के साथ ही भाजपा ने शुरू कर दी है। सपा ने लोकसभा चुनाव में तो आशातीत प्रदर्शन किया लेकिन अब उपचुनाव में प्रदर्शन दोहराकर यह साबित करने की चुनौती है कि लोकसभा में जो नतीजे आए उसका ठोस आधार भी है।
भाजपा के रणनीतिकारों की चिंता
जबकि भाजपा के पास लोकसभा में बनी धारणा को तोड़कर इन उपचुनावों के माध्यम से कार्यकर्ताओं को ऊर्जीकृत करने का मौका है। हालांकि, इन सीटों के समीकरण भाजपा के रणनीतिकारों की चिंता अधिक बढ़ाते हैं।
मुस्लिम बहुल सीट पर समीकरण
दरअसल, इनमें सपा के खेमे की जो पांच सीटें खाली हुई हैं, उन पर उसका पलड़ा काफी भारी दिखता है। मैनपुरी की करहल सीट से सपा मुखिया अखिलेश यादव विधायक थे। यह सीट सपा का अभेद्य दुर्ग मानी जाती है। मुरादाबाद की कुंदरकी सीट से जियाउर्रहमान बर्क विधायक थे। अब वह सांसद हैं, लेकिन यह मुस्लिम बहुल सीट सपा के कब्जे से छीनना आसान नहीं दिखता।
यहां सपा के सामने संकट
अंबेडकरनगर की कटेहरी सीट से भाजपा सिर्फ 1991 में जीती थी। यहां पांच बार बसपा तो दो बार सपा जीती है। क्षेत्र के कद्दावर नेता व दो बार से जीत रहे लालजी वर्मा अब सपा के टिकट से लोकसभा चुनाव जीते हैं। यहां उनके प्रभाव की काट भाजपा का काफी पसीना बहाना पड़ेगा। इसी तरह फैजाबाद लोकसभा सीट के तहत आने वाली मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर सभी की नजरें होंगी।
यहां भाजपा को दिखाना हो दम
अयोध्या की भूमि पर भाजपा को परास्त करने वाले अवधेश प्रसाद की इस सीट पर भाजपा को अपना बल दिखाना पड़ेगा। वहीं, कानपुर की सीसामऊ सीट की बात करें तो तीन बार से सपा के इरफान सोलंकी यहां विधायक थे। 2017 के मुकाबले 2022 में सपा की जीत का अंतर बढ़ भी गया था। इस सीट पर भी मुस्लिम आबादी सबसे अधिक है।
पांच सीटें बचाने की चुनौती
यहां अतिरिक्त सीटें पाने की भाजपा की संभावनाएं फिलहाल सीमित दिखती हैं, लेकिन अपने खेमे की पांच सीटें बचाने की चुनौती जरूर उसके सामने है। इनमें से प्रयागराज की फूलपुर, अलीगढ़ की खैर और गाजियाबाद सीट पर भाजपा के लिए लड़ाई थोड़ी आसान होगी। लेकिन मुजफ्फरनगर की मीरापुर सीट इतनी आसान नहीं।
भाजपा और निषाद पार्टी का समीकरण
पिछली बार इस सीट से रालोद के चंदन चौहान जीत थे, तब रालोद-सपा का गठबंधन था। इस सीट पर सपा का भी अच्छा प्रभाव रहा है। लोकसभा चुनाव में भाजपा मुजफ्फरनगर सीट हारी भी है। ऐसे में यह चुनौती है। इसी तरह मीरजापुर की मझवां सीट पर निषाद पार्टी जीती थी। यहां भाजपा और निषाद पार्टी को सामाजिक समीकरण साधने होंगे।
विधानसभा चुनाव के लिए महत्वपूर्ण है उपचुनाव
भाजपा के एक प्रदेश पदाधिकारी कहते हैं कि अभी चुनाव होने में समय है। संगठन के चुनाव के जरिए जातीय समीकरणों को दुरुस्त करने का अवसर पार्टी के पास है। साथ ही नाराज-निष्क्रिय कार्यकर्ताओं को फिर साथ लाने का समय है। हालांकि, वह मानते हैं कि इन सीटों के परिणाम योगी सरकार की सेहत पर बेशक असर न डालें, लेकिन आगामी विधानसभा चुनाव का माहौल बनाने में सहयोगी जरूर साबित होंगे।